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विजय सेठ-विजया सेठानी की कथा उत्तम ब्रह्मचर्य कहानी असिधारा व्रत में प्रसिद्ध||


 कर दो है इधर नगरी उज्जयिनी की बात है दशलक्षण महापर्व के पावन अवसर पर श्री गुरु उत्तम ब्रह्मचर्य रुपए मिलते रहें हैं आइए सुनते हैं इस संसार में एक निश्चित सिद्धांत व्रत हिसार है संसार की ओर देखने से कभी संसार का त्याग नहीं होगा पांच इंद्रियों के विषयों में रम नाम अर्थात संसार का वर्णन इसलिए ही आसमान अधिक इंजन मरना दुखों से छूट ना चाहते हो तो साथ स्वरूप निषेधात्मक द्रव्य में ही रमण करूं पर द्रव्यों की मंशा छोड़ो नवपाषाण सहित शैल धर्म का पालन करूं 

मुनिराज का ब्रह्मचर्य पर बहुत ही मार्मिक व्यक्ति चल ही रहा था कि एक विजय नामक कुमार को धम्मचक्र व्रत पालन करने के अद्भुत जागृत और वह मुनियों की साक्षी में शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य पालन करने का दम लेते हैं को ले करके मुनि से वृद्धि वक्त की पूरी मन के अश्लील है घृणा नहीं जानता था इसकी कुंठित किस तरह परिक्षा घ्यावी समय मात्र संयोग भयानक कैसा संयोग मिल जाता है जब नगर सेठ धनराज 87 वह संबंध चाहता है 

कि कुछ समय पश्चात विजय कुमार का विवाह नगर के सेठ धनराज के पुत्र विद्या के साथहो जाता है का विवाह की पहली रात थी विद्या कमरे में सज धज कर बैठी थी कि इतने में विजय सेट आते हैं और कहते हैं में ही प्रिय अपना आगे का जीवन व्यतीत करने से पहले मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं विभाग के पूर्व मुनिराज का संग हमारे नगर में पधारा था मुनियों की साक्षी में और उस अधिक भ्रम चेहरे के वातावरण में मैंने शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य से रहूंगा ऐसा नियम लिया था प्रणाम वह तेज सुहागिन पति विजय आखिर आंखों के आगे दूषण को धरती नाच उठे मैं उठ गया 

पतन उल्टी रॉ गाने निषेध तार डोली उठे इसके पहले कुछ विजय कहीं विजय आपके मुख से बोल उठे इसके आगे विजय से कुछ बोल पाते कि इतने में विजय को बोल उठी नाथ ने में मैंने भी यही व्रत धारण किया था कि हमारे भी नगर में मुनीवर का संघ प्रधान था और उस अद्भुत ब्रह्मचर्य के वातावरण में मैंने भी कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचर्य से रहने का नियम दिया था संभवत सारख्या शब्दों ने किया किनारा हो यह जैसे किसी खिलाड़ी ने अब दावर आखिरी हारा हो दोनों ही स्तंभित रह गए

 फिर भी विद्या हिम्मत नहीं हारी और बोली थी कि हिना साथ जिससे आपका कोई वॉइस आगे बढ़े आप दूसरा विवाह कर लीजिए मैं दासी बनकर ब्रह्मचर्य से अपना पूरा जीवन यापन कर लूंगी बस और मत कहो ऐसे वचनों से मुझे लज्जित मत करो फोन यह दिल लाख जन्म भी पालू तो तुम जैसे प्रिय नहीं मिलेगी यह तो बड़े ही पुण्य के उद्देश्य से ऐसा शुभ अवसर आया है हम आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं आज से तुम मेरी बहन समान हो हम दोनों अपना पूरा जीवन ब्रह्मचर्य से व्यतीत करेंगे और इसी के साथ वह दोनों अपना पूर्ण जीवन ब्रह्मचर्य से रहने का निर्णय लेते हैं 

इसी के साथ वह एक निर्णय लेते हैं कि वह अपनी यह बात गुप्त रखेंगे और जिस दिन यह बात सब में प्रगट हो जाएगी उस दिन वह दोनों दिगंबर नींद साधारण कर लेंगे वह होगी पावन उसने कि आप पर नियुक्तियों का यह जिसके आंचल मे नवदंपति ने यह संकल्प किया होगा उसी नगर में एक धर्मनिष्ठ जिंदा नामक शेष रहते थे एक दिन उनकी नवविवाहित पुत्रवधू से पानी छानते हुए बिरयानी गिर गई और उनके घर का चंदवक काला पड़ गया सेठ जी बहुत चिंतित हुए हैं है और नगर में पधारे 

मुनिराज से प्रायश्चित हेतु उनके पास पहुंचे सेठ का पूरा वृत्तांत सुनने के बाद प्रायश्चित देते हुए मुनिराज कहते हैं फ्रिगेट यदि तुम इस व्रत को ब्रह्मचर्य व्रत को अखंड पालन करने वाले दंपति को भोजन कराओ तब तुम्हारा प्रेषित पूर्ण होगा तब देश-विदेश के दंपति भोजन के लिए सिर जी के यहां पदार्थ हैं परंतु उनके चौकी का चंदोवा स्वेत नहीं होता सेठ जी बहुत चिंता में पड़ जाते हैं तब एक दिन विजय सेट और विजय सेठानी भोजन के लिए पधारते हैं और उनके भोजन करते हैं संग वशीभूत हो जाता है है और इसी घटना के साथ उनके ब्रह्मचर्य की बात अब चारों ओर लोगों में पता चल जाती है चाहिए और से झज्जर होने लगती है 

जय हो और तभी वह दोनों अपने व्रत के अनुसार दिगंबरी दीक्षा धारण कर लेते हैं 16 रहे बोलूं ब्रह्मचारी परिणति मात्र अपावन है ब्रह्मरूप को लगते हैं परिणति हो जावे पावन है यह समझ संस्कृतिक प्रभाव संयुक्त इपोच पक्ष लेते हैं अब भी भारत में यत्र-तत्र तरह उदाहरण लेते हैं अब वे भारत में अत्रि इस तरह उदाहरण लेते हैं और विश्वास रेणु बसावत ऐसा अधिक कभी हुआ होगा का यह जिसने ने नवदंपति बनकर भी मधुरस को नहीं चखा होगा का यहां पर इसमे क्या चार करना है यह महावीर का भारत है सदियों से बहती रहीं यहां आज आत्मा वाद की आदत है सदियों से बहती रही हूं यहां आधा खत्म विवाद कि आरत है झाल


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